Friday, 24 November 2017

Herbaria of Rajasthan

Herbaria of Rajasthan
1. Local name - Ghoda mothiya, मोथिया
    Indian name - Nagarmotha, mustak , motha
    English name - Nut grass
    Latin name - Cyprus rotundus
    Parts used - Roots
    Uses - Fever and obesity

2. Local name - Khejari  खेजरी
    Latin name - Prosopis cineraria

3. Indian name - Babul बबूल
    Latin name - Acacia nilotica spp. indica

4. Indian name - Neem नीम
    Latin name - Azadirachta indica

5. Indian name - Kumat कुमटा

    Latin name - Acacia senegal

6. Indian name - Phog फोग

Latin name - Calligonum polygonoides

फोग री जड़ भी ऊंडी। बंतळ करता लोग कैवै कै फोग-खेजड़ा पताळ रो पाणी पीवै। खोदता जावो, पण आं री जड़ नीं खूटै। फोग बिरखा रै पाणी सूं ई जीवतो रैय सकै। गरमियां में हर्यो रैवै। इं रा जड़-बांठ सांगोपांग बळीतो। इणरा पत्तां नै ल्हासू कैवै। गाय, भैंस, बकरी, भेड अर ऊँट ल्हासूं कोड सूं खावै। इण बांठ रा फूलां नै फोगलो कैयीजै। फोगलै रो रायतो बणै लिज्जतदार। इण रायतै री तासीर ठण्डी। सरीर री गरमी रो बैरी। बैदंग में इण बांठ रो खासो नांव। लू रो ताव उतारण सारू रामबांण। डील माथै इणरा हर्या पानका नाखो अर लू रो ताव उतारो। लकवै रै रोग्यां रो इलाज भी फोग सूं हुवै। मरीज नै उघाड़ो कर`र मांचै सुवावै। मांचै नीचै सूं फोग रै पत्तां री भाप दिरीजै। बैद बतावै कै इणसूं लकवो ठीक हुवै। फोग रै फळ नै घिंटाळ कैवै। घिंटाळ डांगरां रो लजीज चारो। घिंटाळ ऊँटां नै भोत भावै। जे खोड़ में तिसाया मरो, फोग रा पानका चाबो। तिरस नै जै माताजी री। फोग धोर्यां रो चूल्हो दोय तरियां सूं बाळै। एक तो लकड़ी सूं अर दूजो पानकां, घिंटाळ अर बळीतै रै बिणज सूं। इणी कारण मुरधर रै लोकजीवण में फोग री मोकळी महिमा। बैसाख री तपती लूवां में हर्यो कच्च रैवै। खारा खाटा ल्हासू खाय'र छाळ्यांक् मोकळो दूध देवै। बैसाख में गाय-भैंस रो दूध सूक ज्यावै, पण छाळ्यां धीणो बपरावै। इण सारू लोक में कैबा चालै-
'फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई।
भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई।'
फोगलै रै रायतै सारू भी लोक में कैबा है-
'फोगलै रो रायतो, काचरी रो साग।
बाजरी री रोटड़ी, जाग्या म्हारा भाग।'
फोग की कहावतें - फोग आलो ई बळै, सासू सूदी ई लड़ै।
कहावत में कहा गया है कि जिस प्रकार फोग की लकड़ी गीली होने पर भी आग पकड़ लेती है, उसी प्रकार सास सीधी हो तब भी अधिकार पूर्वक बहू को फटकार लगा ही देती है। मौका मिलने पर असली स्वभाव उजागर हो ही जाता है।


7. Local name - Boradi बोरडी, झडबेर

Indian name - Jharber

Latin name - Ziziphus nummularia

8. Indian name - Ber बेर

Latin name - Ziziphus mauritiana

9. Indian name - Jal, Pilu पीलू

Latin name - Salvadora oleoides 

10. Indian name - Kair कैर

Latin name - Capparis decidua

11. Local name - Pasugandhi, Ajagandha, untbagra

Indian name - Hurhur, hulhul हुरहुर

English name - Dog mustard

Latin name - Cleome gynandra

12. Indian name - Doob, durva, Bermuda grass दूब

Latin name - Cynodon dactylon

13. Local name - साटा

Indian name - Punarnava पुनर्नवा

English name - Red spiderling, spreading hogweed

Latin name - Boerhavia diffusa

14. Local name - Baru, बरू,  jangli-jowar

Indian name - Johnson Grass

Latin name - Sorghum halepense

15. Local name -  

Indian name - Malkangani, मालकांगनी

English Name - Intellect Tree, Black-Oil Plant, Climbing Staff Tree

Latin name - Celastrus Paniculatus

16. Local name -

Indian name - Kheenp, खींप

Latin name - Leptadenia pyrotechnica

17. Local name - asthma-plant

Indian name - baridhudi, dudh ghas, dudhi, बड़ी दुधी

Latin name - Euphorbia hirta

18. Local name - Masa

Indian name - Sarphonk, Sharpunkha, सरफोंक, शरपुंखा 

English Name -  Fish poison, Wild indigo

Latin name - Tephrosia purpurea

19. Local name -

Indian name -

English Name -

Latin name -

20. Local name -

Indian name -

English Name -

Latin name -


Tuesday, 24 October 2017

11. मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project)

मानव जीनोम परियोजना
संयुक्त राज्य अमेरिका के ऊर्जा विभाग एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था के सहयोग से 1 अक्टूबर 1920 को एक महत्वपूर्ण परियोजना का प्रारंभ हुआ जिसे मानव जीनोम परियोजना नाम दिया गया ।
  • मानव जीनोम परियोजना प्रारंभिक वर्षों में वेलकम न्यास ( यूनाइटेड किंगडम की एक संस्था) की मदद से इस परियोजना को विकसित किया गया था । लेकिन बाद में जापान, फ्रांस, जर्मनी, चीन एवं अन्य देशों के द्वारा सहयोग प्रदान किया गया । यह योजना 2008 में पूर्ण हो गई थी ।
  • इस परियोजना के द्वारा विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाले डीएनए की विभिन्नताओं के आधार पर प्राप्त जानकारी से मानव में मिलने वाली हजारों अनियमितताओं के बारे में पहचानने, उपचार करने और उनको रोकने में सहायता मिलती है ।
  • इस योजना को प्रारंभ में 13 वर्ष के लिए बनाया गया था लेकिन तकनीकी आधुनिकीकरण के कारण इस योजना पर तेजी से कार्य करना संभव हो सका ।
  • परियोजना का मुख्य उद्देश्य सभी जीनों को पहचानना एवं लगभग 3.3×109 क्षार युग्मों के अनुक्रम का निर्धारण करना था ।
  • मानव जीनोम परियोजना के बारे में जानकारी जीव विज्ञान के इस नए क्षेत्र का तेजी से विस्तार संभव हो पाया जिसे जैव सूचना विज्ञान कहते हैं ।
  • मानव जीनोम परियोजना में लगभग 3.3×109 क्षार युग्म  मिलते हैं ; यदि अनुक्रम जानने के लिए प्रति क्षार 3 अमेरिकन डॉलर (US $ 3)  खर्च होते हैं तो पूरी योजना पर खर्च होने वाली लागत लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगी ।  प्राप्त अनुक्रमों को टंकणित रूप में किताब में संग्रहित किया जाए तो इसके प्रत्येक पृष्ठ में 1000 अक्षर हो तो इस प्रकार इस किताब में 1000 पृष्ठ होंगे । तब इस तरह से एक मानव कोशिका के DNA सूचनाओं को संकलित करने हेतु 3300 किताबों की आवश्यकता होगी । इस प्रकार बड़ी संख्या में आंकड़ों की प्राप्ति के लिए उच्च गतिकीय संगणक साधन की आवश्यकता होगी, जिससे आंकड़ों के संग्रह, विश्लेषण एवं पुनः उपयोग में सहायता मिलती है ।

मानव जीनोम परियोजना के लक्ष्य :-
(i) मानव के सभी जीनों (लगभग 20,000 - 25,000) की पहचान करना ।
(ii) मानव के जीनों (DNA)  को बनाने वाले 3.6×109 (3 बिलियन) क्षार युग्मों के अनुक्रमों का अध्ययन करना तथा प्राप्त सूचनाओं का आंकड़ों के रूप में संग्रह करना ।
(iii) आंकड़ों के विश्लेषण हेतु नई तकनीक विकसित करना ।
(iv) परियोजना द्वारा उत्पन्न होने वाले जातीय, नैतिक, कानूनी एवं सामाजिक मुद्दों (ELSI; Ethical, Legal and Social Issues) को समझाने एवं उनके बारे में विचार करने हेतु ।


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Saturday, 21 October 2017

10. जीन अभिव्यक्ति का नियमन (Regulation of Gene Exppression)

जीन अभिव्यक्ति का नियमन :-
आण्विक जीव विज्ञान सम्बंधित आधुनिक अध्ययन करने के अंतर्गत जीन को प्रेरित या दमित करके एंजाइम की उत्पत्ति को संचालित किया जाता है | इसके साथ ही जीन को निष्क्रिय या अवरुद्ध करके प्रोटीन संश्लेषण में अनुलेखन व अनुवादन जैसी प्रक्रियाओं को भी निष्क्रिय किया जा सकता है | इस प्रकार जीनों द्वारा किसी उपापचयी परिपथ की अभिक्रियाओं के नियन्त्रण को जीन अभिव्यक्ति कहते है |
जीन की अभिवयक्ति का यह नियमन प्रोकैरियोट एवं यूकैरियोट सजीवों में अलग-अलग प्रक्रियों द्वारा संचालित होता है जो निम्न प्रकार है -
(i) यूकैरियोट में जीन नियमन :-
यूकैरियोट में जीन नियमन निम्न स्तर पर हो सकता है -
(a) अनुलेखन स्तर (प्रारंभिक अनुलेखन का निर्माण)
(b) संसाधन स्तर (सम्बन्धन का नियमन)
(c) m-RNA का केन्द्रक से कोशिकाद्रव्य में अभिगमन
(d) स्थानान्तरण स्तर
जीन कोशिका में अभिव्यक्त होकर एक विशेष कार्य को सम्पादित करते है |
(ii) प्रोकैरियोट में जीन नियमन :-
प्रोकैरियोट में जीन नियमन निम्न स्तर पर हो सकता है -
E.coli में स्थित एंजाइम  बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज, डाई सैकेराइड लैक्टोज का जल अपघटन कर गैलेक्टोज व ग्लूकोस का निर्माण करते है | जिसे जीवाणु उर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करते है |
डाई सैकेराइड लैक्टोज बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज गैलेक्टोज + ग्लूकोस
लैक्टोज जो जीवाणु के ऊर्जा का स्रोत है कि अनुपस्थिति में बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम का संश्लेषण नहीं होता है | अतः यह एक उपापचयी शरीर क्रियात्मक स्थिति है जो जीन की अभिव्यक्ति को नियमित करती है |
एक भ्रूण का व्यस्क जीव में विकास एवं विभेदन जीन के विभिन्न समूह की अभिव्यक्ति नियमन का परिणाम है |
प्रोकैरियोट सजीवों में उपस्थित नियमनकारी जीन निम्न दो प्रक्रियाओं द्वारा जीनों की क्रियाशीलता का नियमन करते है |
(i) प्रेरण   (ii) दमन
प्रोकैरियोटिक में जीन अभिव्यक्ति के नियमन के लिए कुछ प्रभावी स्थल होते है जो अनुलेखन प्रारंभन दर को नियमित करते है |
अनुलेखन इकाई में एक निश्चित उन्नायक के साथ RNA पोलीमेरेज की क्रियाशीलता अतिरिक्त प्रोटीन की पारस्परिक क्रिया द्वारा नियमित होती है जो प्रारम्भक स्थल को पहचानने में सहायता देती है | ये नियामक प्रोटीन प्रेरण एवं दमनकारी दोनों रूप में कार्य कर सकती है |
प्रोकैरियोट DNA में प्रोमोटर स्थल या उन्नायक स्थल की उपलब्धता प्रोटीन की विशेष अनुकार्मों से अन्योन्य क्रिया द्वारा निर्मित होती है जिसे ऑपरेटर या प्रचालक कहते है |
अधिकतर ऑपेरोन (प्रचालेक) में ऑपरेटर (प्रचालक) स्थल प्रोमोटर भाग के पास स्थित होते है | ऐसी स्थिति में ऑपरेटर के अनुक्रम (नाइट्रोजनी क्षार) दमनकारी प्रोटीन से बंध जाते है | प्रत्येक ऑपेरोन का अपना एक विशिष्ट ऑपरेटर एवं दमनकारी प्रोटीन होता है |
eg. लैक ऑपेरोन लैक ऑपरेटर से मिलता है | यह विशेष रूप से लैक दमनकारी से अन्योन्य क्रिया करता है |

लैक ऑपेरोन मॉडल (The Lac Operon Model) :-

सर्वप्रथम आनुवंशिकविज्ञ फ्रेक्वस जैकब एवं जैव रसायनविज्ञ जैकब मोनाड ने E.coli जीवाणु का अध्ययन करने पर प्रोकैरियोट के जीन नियमन को समझाने के लिए ऑपेरोन मॉडल प्रस्तुत किया | उन्होंने E.coli में बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम के संश्लेषण से सम्बंधित प्रेरण तंत्र का अध्ययन करते हुए जीन नियमन की प्रेरण एवं दमन अवधारणा विकसित की |
E.coli का लैक ऑपेरोन मॉडल मुख्यतः एंजाइम बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज के संश्लेषण कार्य पर आधारित है | यह एंजाइम लैक्टोज शर्करा का विघटन ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज में करता है | इसलिए इसे लैक ऑपेरोन मॉडल कहते है |
लैक ऑपेरोन में एक वर्तुलाकार DNA होता है जिसमे जीवाणु का आनुवंशिक पदार्थ स्थित होता है | इस ऑपेरोन में चार मुख्य घटक पाए जाते है जो समन्वित रूप से कार्य करते है, ये घटक निम्न है -
(i) संरचनात्मक जीन (Structural gene)
(ii) नियामक जीन (Regulator gene)
(iii) प्रचालक जीन (Operator gene)
(iv) उन्नायक जीन (Promotor gene)
(i) नियामक जीन (Regulator gene) :-
यह ऑपेरोन मॉडल में पाए जाने वाली विशेष प्रकार की जीन है जो प्रोमोटर जीन के पहले स्थित होती है | इनका विशेष कार्य संरचनात्मक जीन को नियंत्रित करना है | ये आवश्यकता अनुसार दमनकारी पदार्थ उत्पन्न करती है | इस प्रोटीनीय पदार्थ को 'i' (inhibitor gene) कहते है | इस प्रकार यह जीन एंजाइमी प्रोटीनों की संरचना का निर्धारण न करके अन्य जीनों जैसे संरचनात्मक जीन एवं प्रोमोटर जीन की अभिव्यक्ति का नियमन करते है |
(ii) संरचनात्मक जीन (Structural gene) :-
यह ऑपेरोन का प्रमुख कार्यकारी घटक  है जो प्रोटीन के लिए कोड निर्धारित करती है | E.coli के लैक ऑपेरोन में तीन प्रकार की संरचनात्मक जीन क्रमशः z, y एवं a पाई जाती है | ये जीन पोली सिस्ट्रोनिक m-RNA अणु का अनुलेखन करते है |
z जीन बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम को कोडित करता है जो डाइसैकेराइड लैक्टोज के जल अपघटन से ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज का निर्माण करता है |
y जीन परमिएज का कूटलेखन करता है जो लैक्टोज के कोशिका में प्रवेश को आसान बनाता है |
a जीन के द्वारा ट्रान्स एसीटायलेज का कूट लेखन किया जाता है जो लैक्टोज प्रेरण के समय बहुत थोड़ी मात्रा में उपलब्ध रहता है |
इस प्रकार से लैक ऑपेरोन के तीनों जीन के उत्पाद लैक्टोज उपापचयी के लिए आवश्यक है |
(iii) प्रचालक जीन (Operator gene) :-
यह प्रथम संरचनात्मक जीन के पास स्थित होती है | मॉडल में कार्य विभाजन के अनुसार प्रचालक (operator) जीन अनुलेखन क्रिया का दमन करता है एवं संरचनात्मक जीन पर ऋणात्मक नियन्त्रण करता है |
(iv) उन्नायक जीन (Promotor gene) :-
यह ऑपरेटर जीन के आगे पाए जाने वाला ऑपेरोन का विशिष्ट भाग है क्योंकि एंजाइम RNA पोलीमेरेज इससे सम्बद्ध रहता है | इसका कार्य प्रोटीन निर्माण नहीं होता है अपितु पोलीमेरेज की उपस्थिति के कारण प्रोमोटर जीन, संरचनात्मक जीन के अनुलेखन का प्रारंभन करता है |

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Monday, 4 September 2017

शिक्षक दिवस

भारत भूमि पर अनेक विभूतियों ने अपने ज्ञान से हम सभी का मार्ग दर्शन किया है। उन्ही में से एक महान विभूति शिक्षाविद्, दार्शनिक, महानवक्ता एवं आस्थावान विचारक डॉ. सर्वपल्लवी राधाकृष्णन जी ने शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। और उन्ही के जन्मदिन को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। डॉ. राधाकृष्णन की मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाय़े तो समाज की अनेक बुराईयों को मिटाया जा सकता है।
ऐसी महान विभूति का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना हम सभी के लिये गौरव की बात है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के व्यक्तित्व का ही असर था कि 1952 में आपके लिये संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का पद सृजित किया गया।
शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत : स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति जब 1962 में राष्ट्रपति बने तब कुछ शिष्यों ने एवं प्रशंसकों ने आपसे निवेदन किया कि  वे उनका जनमदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। तब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा कि मेरे जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करूंगा। तभी से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ज्ञान के सागर थे। उनकी हाजिर जवाबी का एक किस्सा 
एक बार एक प्रतिभोज के अवसर पर अंग्रेजों की तारीफ करते हुए एक अंग्रेज ने कहा – “ईश्वर हम अंग्रेजों को बहुत प्यार करता है। उसने हमारा निर्माण बङे यत्न और स्नेह से किया है। इसी नाते हम सभी इतने गोरे और सुंदर हैं।“ उस सभा में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी भी उपस्थित थे। उन्हे ये बात अच्छी नही लगी अतः उन्होने उपस्थित मित्रों को संबोधित करते हुए एक मनगढंत किस्सा सुनाया—
“मित्रों, एक बार ईश्वर को रोटी बनाने का मन हुआ उन्होने जो पहली रोटी बनाई, वह जरा कम सिकी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों का जन्म हुआ। दूसरी रोटी कच्ची न रह जाए, इस नाते भगवान ने उसे ज्यादा देर तक सेंका और वह जल गई। इससे निग्रो लोग पैदा हुए। मगर इस बार भगवान जरा चौकन्ने हो गये। वह ठीक से रोटी पकाने लगे। इस बार जो रोटी बनी वो न ज्यादा पकी थी न ज्यादा कच्ची। ठीक सिकी थी और परिणाम स्वरूप हम भारतीयों का जन्म हुआ।”
ये किस्सा सुनकर उस अंग्रेज का सिर शर्म से झुक गया और बाकी लोगों का हँसते-हँसते बुरा हाल हो गया।
 ऐसे संस्कारित एवं शिष्ट माकूल जवाब से किसी को आहत किये बिना डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने भारतीयों को श्रेष्ठ बना दिया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का मानना था कि व्यक्ति निर्माण एवं चरित्र निर्माण में शिक्षा का विशेष योगदान है। वैश्विक शान्ति, वैश्विक समृद्धि एवं वैश्विक सौहार्द में शिक्षा का महत्व अतिविशेष है। उच्चकोटी के शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को भारत के प्रथम राष्ट्रपति महामहीम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत रत्न से सम्मानित किया।

गुरु का स्थान


एक राजा था. उसे पढने लिखने का बहुत शौक था. एक बार उसने मंत्री-परिषद् के माध्यम से अपने लिए एक शिक्षक की Hindi Story on Teacherव्यवस्था की. शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा. राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ. गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था. राजा बड़ा परेशान, गुरु की प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही प्रसिद्द और योग्य गुरु थे. आखिर में एक दिन रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये.
राजा ने एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”
गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…”
” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती की.
गुरूजी ने कहा, “राजन बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है. गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था.
कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठाएं और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”
राजा की समझ में सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की .
इस छोटी सी कहानी का सार यह है कि हम रिश्ते-नाते, पद या धन वैभव किसी में भी कितने ही बड़े क्यों न हों हम अगर अपने गुरु को उसका उचित स्थान नहीं देते तो हमारा भला होना मुश्किल है. और यहाँ स्थान का अर्थ सिर्फ ऊँचा या नीचे बैठने से नहीं है , इसका सही अर्थ है कि हम अपने मन में गुरु को क्या स्थान दे रहे हैं।  क्या हम सही मायने में उनको सम्मान दे रहे हैं या स्वयं के ही श्रेस्ठ होने का घमंड कर रहे हैं ? अगर हम अपने गुरु या शिक्षक के प्रति हेय भावना रखेंगे तो हमें उनकी योग्यताओं एवं अच्छाइयों का कोई लाभ नहीं मिलने वाला और अगर हम उनका आदर करेंगे, उन्हें महत्व देंगे तो उनका आशीर्वाद हमें सहज ही प्राप्त होगा.

Narration - Direct and Indirect

Direct को  Indirect (Reported speech) में बदलने के tenses से संबंधित नियम :-