4. आनुवंशिक पदार्थ की खोज

आनुवंशिक पदार्थ की खोज-
सर्वप्रथम मेंडल के वंशागति के सिद्धान्तों और फ्रेडरिक मिशर के द्वारा न्यूक्लिक अम्ल की खोज के पश्चात आनुवंशिक वंशागति के आण्विक आधार की खोज, मेंडल, सट्टन व बोवेरी एवँ मॉर्गन व अन्य वैज्ञानिकों की पूर्व खोज के आधार पर, यह स्पष्ट हुआ कि गुणसूत्र कोशिकाओं के केन्द्रक में पाया जाता है लेकिन यह स्पष्ट नही हो सका कि आनुवंशिक पदार्थ कौनसा अणु है । अतः इस संबंध में निम्न प्रयोग किये गए -

(i) रूपांतरीय सिद्धान्त :-
प्रतिपादक - फ्रेडरिक ग्रिफिथ
स्रोत - स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी जीवाणु
जब स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी जीवाणु की संवर्धन प्लेट पर वृद्धि करवाई गई तो इसकी कुछ चमकीली- चिकनी कॉलोनी (S) एवँ दूसरी खुरदरी (रुक्ष ;R) का निर्माण होता है।
S-प्रभेद के जीवाणु में श्लेष्मा (बहुशर्करा युक्त) आवरण उपस्थित होता है और वह संक्रमित भी होता है । जबकि R- प्रभेद वाले जीवाणु पर श्लेष्मा आवरण अनुपस्थित एवँ असंक्रमित होते हैं ।

ग्रिफिथ ने इन प्रभेदों को चूहों में प्रवेश करवाया और निम्न निष्कर्षण निकाले -
(i) S-प्रभेद ----> चूहे में प्रवेश करवाया गया --> चूहा मर गया
(ii) R- प्रभेद ---चूहे में प्रवेश करवाया गया --> चूहा जीवित
(iii) ताप मृत S- प्रभेद ---चूहे में प्रवेश करवाया गया --> चूहा जीवित
(iv) ताप मृत S-प्रभेद + R-प्रभेद ---चूहे में प्रवेश करवाया गया --> चूहा मर गया

ग्रिफिथ ने जीवाणु को गर्म करने पर मृत पाया और मृत S-प्रभेद को चूहे में प्रवेश करवाने पर उसकी मृत्यु नहीं हुई लेकिन ताप मृत S-प्रभेद और सजीव R-प्रभेद जीवाणु के मिश्रण को चूहे में प्रवेश करवाया गया तो चूहे की मृत्यु हो गई। उस मृत चूहे से उसने सजीव S-प्रभेद को पृथक किया और बताया कि R-प्रभेद जीवाणु ताप मृत S-प्रभेद जीवाणु द्वारा रूपांतरित किया गया ।
ये रूपांतरित कारक ताप मृत S-प्रभेद से R- प्रभेद में स्थानांतरित होने से इसमें(R) चिकनी श्लेष्मा (बहुशर्कराइड) आवरण का निर्माण होता है जिससे यह उग्र (संक्रमित) रूप में परिवर्तित हो जाता है ।
ग्रिफिथ ने बताया कि यह निश्चित ही आनुवंशिक पदार्थ के रूपांतरण के कारण हो पाता है ।
रूपांतरित सिद्धांत का जैव रासायनिक विश्लेषण :-
एवरी, मैक्लॉउड एवँ मैकोर्टी ने ग्रिफिथ के सिद्धांत का जैव विश्लेषण किये, उन्होंने ताप मृत S- कोशिकाओं से जैव रसायनों ( DNA, RNA एवँ प्रोटीन) को पृथक किया और इन्हें इनके विभिन्न एंजाइमों - प्रोटीन को प्रोटीएज, RNA को RNase एवँ DNA को DNase पाचक एंजाइमों से क्रिया करवायी तो उन्होंने देखा कि प्रोटीएज एवँ RNase इस रूपांतरण को प्रभावित नहीं करते है क्योंकि इसमें प्रोटीन व RNA नहीं है । जबकि DNase से पाचन के बाद रूपांतरण की क्रिया बंद हो जाती है । अतः इससे निष्कर्ष निकलता है कि आनुवंशिक पदार्थ DNA है ।

(ii) आनुवंशिक पदार्थ DNA है
प्रतिपादक - अल्फ्रेड हर्षे एवँ मॉर्था चेस
स्रोत - जीवाणुभोजी (बैक्टिरियोफैज)
वे विषाणु जो जीवाणु को संक्रमित (भक्षण) करते हो उन्हें जीवाणुभोजी (बैक्टिरियोफैज) कहते है ।
हर्षे व चेस ने अपने प्रयोग के लिए DNA एवँ प्रोटीन निकालकर जीवाणु में प्रवेश करवाया । उन्होंने कुछ जीवाणुओं को ऐसे माध्यम में उत्पन्न किया जिनमें से एक को विकिरण सक्रिय फॉस्फोरस एवँ दूसरे को विकिरण सक्रिय सल्फर पर वृद्धि करवायी गयी थी ।
जिस विषाणु को विकिरण सक्रिय फॉस्फोरस की उपस्थिति में उत्पन्न किया गया, उसमें विकिरण सक्रिय DNA उपस्थित था लेकिन प्रोटीन अनुपस्थित थी ।
इसी तरह से दूसरे विषाणु जिसे विकिरण सक्रिय सल्फर की उपस्थिति में उत्पन्न किया गया उसमें विकिरण सक्रिय प्रोटीन पायी गयी, लेकिन विकिरण सक्रिय DNA अनुपस्थित था ।
विकिरण सक्रिय जीवाणुभोजी E.coli नामक  जीवाणु से चिपक जाते है और जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे विषाणु आवरण अलग होता जाता है ।
जीवाणुओं को अपकेन्द्रण यंत्र के द्वारा क्रिया करवाने से विषाणु जीवाणु से अलग हो जाते है ।
जो जीवाणु विकिरण सक्रिय DNA वाले विषाणु से संक्रमित हुए थे, वे विकिरण सक्रिय बने रहे, इससे स्पष्ट होता है कि जो पदार्थ विषाणु से जीवाणु में प्रवेश किया वह DNA है ।
जो जीवाणु विकिरण सक्रिय सल्फर वाले विषाणु से संक्रमित हुए थे उनमें विकिरण सक्रिय प्रोटीन था तो वे विकिरण सक्रिय नहीं रहे । अतः इससे स्पष्ट होता है कि प्रोटीन विषाणु से जीवाणु में प्रवेश नहीं करती है । इस प्रकार इस प्रयोग से स्पष्ट हुआ कि विषाणु से जीवाणु में प्रवेश करने वाला पदार्थ "आनुवंशिक पदार्थ DNA है" ।

आनुवंशिक पदार्थ के गुण

  • न्यूक्लिक अम्ल में DNA सबसे अधिक महत्वपूर्ण जैविक पदार्थ है, यह न केवल आनुवंशिक संघटन का नियमन करता है अपितु प्रोटीन संश्लेषण का भी नियंत्रण करता है ।
  • एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी या संतति कोशिकाओं में आनुवंशिक सूचना भेजने हेतु ।
  • जीवों एवँ कोशिकाओं के लिए प्रोटीन अणुओं के संश्लेषण की सूचनाओं के स्रोत के रूप में।
  • DNA में स्वयं की प्रतिकृति करने की क्षमता होती है अर्थात् DNA स्वयं द्विगुणन करने के कारण जनन के लिए अत्यंत उपयोगी है ।
  • RNA का निर्माण अनुलेखन की क्रिया द्वारा DNA करता है ।
  • DNA होता है तथा इसमें उत्परिवर्तन एवँ आनुवंशिक परिवर्तनों की न्यूनतम संभावनाएं होती है । इसे स्पष्ट करने के लिए ग्रिफिथ के रूपांतरित कारक जिसमे ताप से जीवाणु की मृत्यु हो जाती है लेकिन आनुवंशिक पदार्थ की कुछ विशेषताएँ नष्ट नहीं हो पाती है ।
  • DNA के परिक्षेप से इस बात की पुष्टि होती है कि DNA के दोनों एक दूसरे के पूरक होते है जो उच्च ताप पर गर्म पर एक दूसरे से अलग हो जाते है लेकिन पुनः उचित या अनुकूल स्थितियाँ आने पर एक दूसरे से जुड़ जाते है ।
  • RNA के प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड पर C-2 पर OH समूह पाया जाता है । यह एक क्रियाशील समूह है जिसके कारण RNA अस्थायी एवँ शीघ्रता से विखण्डित हो जाता है । इसलिए DNA रासायनिक दृष्टि से कम  सक्रिय एवँ संरचनात्मक दृष्टि से अधिक स्थाई होता है।  अतः दोनों न्यूक्लिक अम्लों में DNA एक श्रेष्ठ आनुवंशिक पदार्थ है ।

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