वंशागति का आण्विक आधार
1869 में फ्रेडरिक मिशर ने मवाद कोशिकाओं के केंद्रक से एक विशिष्ट कार्बनिक पदार्थ की खोज की, जिसे पहले न्यूक्लिन एवं बाद में न्यूक्लिक अम्ल कहा गया ।प्रोटीन अणु की जटिलता को देखते हुए पूर्व में यह धारणा थी कि प्रोटीन ही आनुवंशिक के संचरण की इकाई है, परंतु सन् 1944 में एवेरी, मैक्लॉड एवं मैकॉर्टी ने सिद्ध किया कि न्यूक्लिक अम्ल ही आनुवंशिक पदार्थ है जो लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक लेकर जाता है ।
न्यूक्लिक अम्ल के प्रकार :-
न्यूक्लिक अम्ल दो प्रकार के होते है ।
(i) डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल (ii) राइबो न्यूक्लिक अम्ल
(i) डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल :-
प्राप्तिस्थल :- पादप वायरसों तथा रेट्रोवायरस (जैसे HIV) के अतिरिक्त अन्य सभी जीवो में आनुवंशिक पदार्थ डीएनए होता है ।
पादप वायरसों में आनुवंशिक पदार्थ RNA होता है ।
जीवाणुभोजी व जंतु वायरसों में DNA का केवल एक कुंडलीत अणु होता है तथा चारों ओर प्रोटीन का आवरण पाया जाता है ।
जीवाणु एवं यूकेरियोटिक कोशिकाओं , माइटोकॉन्ड्रिया क्लोरोप्लास्ट में डीएनए वृत्ताकार एवं नग्न होता है । प्रत्येक कोशिका के केंद्रक में डीएनए पाया जाता है । प्रोटीन के साथ मिलकर क्रोमेटिन जाल का निर्माण करता है ।
डीएनए डीऑक्सी राइबो न्यूक्लियोटाइड्स का एक लंबा बहुलक है । डीएनए की लंबाई सामान्यतया इसमें मिलने वाले न्यूक्लियोटाइड युग्म पर निर्भर करती है ।
Eg. एक जीवाणुभोजी जिसे Φ×174 कहते हैं ,में 5386 न्यूक्लियोटाइड मिले हैं, जीवाणुभोजी लेम्ड़ा में 48502 क्षार युग्म, इस्चेरिचिया कॉलाई में 4.6×106 क्षार युग्म एवं मनुष्य के अगुणित डीएनए में 3.3×109 क्षार युग्म पाए जाते हैं ।
डीएनए की आणविक संरचना :-
रासायनिक विश्लेषणों से ज्ञात हुआ है कि डीएनए का एक अणु तीन प्रकार के अणुओं के समूह से मिलकर बना होता है।
(i) पंच कार्बन शर्करा (पेंटोज शर्करा)
(ii) नाइट्रोजनी क्षारक
(a) पिरिमिडीन (b) प्यूरिन
(iii) फॉस्फेट समूह
(i) पंच कार्बन शर्करा (पेंटोज शर्करा) :-
DNA अणु में डीऑक्सी राइबोज नामक पेंटोज शर्करा होती है जिसमे 5-C परमाणु पाए जाते है । डीऑक्सी राइबोज शर्करा में C-2 पर एक ऑक्सीजन परमाणु का अभाव होता है । अतः राइबोज़ शर्करा की तुलना में डीऑक्सी राइबोज़ में एक ऑक्सीजन परमाणु कम होता है। इसलिए इसे डीऑक्सी राइबोज़ के नाम से जाना जाता है ।
(ii) नाइट्रोजनी क्षारक :-
DNA में दो प्रकार के नाइट्रोजनी क्षार पाए जाते है - (a) पिरिमिडीन (b) प्यूरिन
(a) पिरिमिडीन :- यह एक वलय वाले नाइट्रोजनी यौगिक होते है । ये दो प्रकार के होते हैं -
(i) थायमीन (thymine) - T (ii) साइटोसिन (cytosine) - C
(b) प्यूरिन :- यह दो वलय वाले नाइट्रोजनी यौगिक होते है । ये भी दो प्रकार के होते है -
(i) एडिनीन (adinine) - A (ii) ग्वानिन (Guanin) - G
नाइट्रोजनी क्षार नाइट्रोजन ग्लाइकोसिडिक बंध द्वारा पेंटोज शर्करा से जुड़ कर न्यूक्लियोसाइड बनाते है ।
(iii) फॉस्फेट समूह :-
फॉस्फोरिक अम्ल DNA के अणु के साथ मिलकर आधार स्तंभ बनाता है। इस अम्ल की उपस्थिति के कारण न्यूक्लिक अम्ल अम्लीय प्रकृति के होते है । शर्करा, क्षार एवं फॉस्फोरिक अम्ल मिलकर न्यूक्लियोटाइड का निर्माण करते हैं । इस क्रिया में संघनन द्वारा जल बाहर निकलता है ।
न्यूक्लिओटाइड का निर्माण न्यूक्लिओसाइड एवं फॉस्फोरिक अम्ल के संघनन से बने फोस्फोएस्टर बंध के कारण  होता है ।
DNA में यौगिकों के समायोजन की प्रक्रिया :-
DNA अणु के निर्माण में शर्करा, नाइट्रोजनी क्षार एवं फॉस्फेट समूह समायोजित होकर न्यूक्लियोसाइड, न्यूक्लियोटाइड एवं पॉलीन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करते हैं ।
न्यूक्लियोसाइड :- एक डीऑक्सी राइबोज़ व एक नाइट्रोजनी क्षार अणु के मिलने से बना अणु न्यूक्लियोसाइड कहलाता है ।
न्यूक्लियोसाइड में क्षार, पेंटोज शर्करा के C-1 से संलग्न रहता है ।
DNA की संरचना में 4 प्रकार के नाइट्रोजनी क्षार उपस्थित होते है । अतः इनके शर्करा से संयोजन के फलस्वरूप चार प्रकार के न्यूक्लियोसाइड बनेंगे ।
(i) डीऑक्सी राइबोज़ + एडिनीन = डीऑक्सी एडिनोसिन
(ii) डीऑक्सी राइबोज़ + ग्वानिन = डीऑक्सी ग्वानोसिन
(iii) डीऑक्सी राइबोज़ + थायमीन = डीऑक्सी थाइमिडीन
(iv) डीऑक्सी राइबोज़ + साइटोसिन = डीऑक्सी साइटिडीन
न्यूक्लियोटाइड :- प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में एक अणु डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा, एक अणु फॉस्फोरिक अम्ल एवं चार नाइट्रोजनी क्षार में से एक क्षार अणु होता है ।
एक न्यूक्लियोसाइड के साथ फॉस्फोरिक अम्ल के एक अणु के संयोजन से एक न्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । इस प्रकार न्यूक्लियोसाइड का फॉस्फेट से संयोजन होने पर चार प्रकार के ही न्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है ।
(i) फॉस्फोरिक अम्ल + डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा + एडिनीन = डीऑक्सी एडिनोसिन मोनो फॉस्फेट
(ii) फॉस्फोरिक अम्ल + डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा + ग्वानिन = डीऑक्सी ग्वानोसिन मोनो फॉस्फेट
(iii) फॉस्फोरिक अम्ल + डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा + थायमीन = डीऑक्सी थाइमिडीन मोनो फॉस्फेट
(iv) फॉस्फोरिक अम्ल + डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा + साइटोसिन = डीऑक्सी साइटिडीन मोनो फॉस्फेट
 पॉलीन्यूक्लियोटाइड :- जब फॉस्फेट समूह फॉस्फोएस्टर बंध द्वारा न्यूक्लियोसाइड के 5' हाइड्रोक्सिल समूह से जुड़ जाता है, तब सम्बंधित न्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । दो न्यूक्लियोटाइड 5'-3' फॉस्फोडाईएस्टर बंध द्वारा डाईन्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । इस तरह से कई न्यूक्लियोटाइड जुड़कर एक
पॉलीन्यूक्लियोटाइड :- जब फॉस्फेट समूह फॉस्फोएस्टर बंध द्वारा न्यूक्लियोसाइड के 5' हाइड्रोक्सिल समूह से जुड़ जाता है, तब सम्बंधित न्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । दो न्यूक्लियोटाइड 5'-3' फॉस्फोडाईएस्टर बंध द्वारा डाईन्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । इस तरह से कई न्यूक्लियोटाइड जुड़कर एक 
पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखला का निर्माण करते है ।
इस प्रकार निर्मित बहुलक के डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा के 5' किनारे पर स्वतंत्र फॉस्फेट समूह मिलता है जिसे पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखला का 5' किनारा कहते है । ठीक इसी तरह से बहुलक के दूसरे सिरे पर डीऑक्सी राइबोज़ युक्त 3' हाइड्रॉक्सिल समूह से जुड़ा होता है ।जिसे पॉलीन्यूक्लियोटाइड का 3' किनारा कहते है ।
पॉली न्यूक्लियोटाइड के आधार (रज्जुक) का निर्माण शर्करा एवं फॉस्फेट से होता है । नाइट्रोजनी क्षार DNA के रज्जुकों के भीतर स्थित (प्रक्षेपी) होते हैं ।
द्विकुंडलित DNA की संरचना :-
मौरिस विल्किन्सन एवं रोज़लिन फ्रेंकलीन द्वारा दिए गए एक्सरे विवर्तन आँकड़ो के आधार पर सन् 1953 में जेम्स वॉटसन एवँ H.F.C. क्रिक ने DNA की आण्विक संरचना का सर्वमान्य द्विकुण्डलित प्रतिरूप दिया था ।
द्विकुंडलित DNA मॉडल की विशेषताएँ :-
वाटसन एवं क्रिक ने के अनुसार-
DNA में यौगिकों के समायोजन की प्रक्रिया :-
DNA अणु के निर्माण में शर्करा, नाइट्रोजनी क्षार एवं फॉस्फेट समूह समायोजित होकर न्यूक्लियोसाइड, न्यूक्लियोटाइड एवं पॉलीन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करते हैं ।
न्यूक्लियोसाइड :- एक डीऑक्सी राइबोज़ व एक नाइट्रोजनी क्षार अणु के मिलने से बना अणु न्यूक्लियोसाइड कहलाता है ।
न्यूक्लियोसाइड में क्षार, पेंटोज शर्करा के C-1 से संलग्न रहता है ।
DNA की संरचना में 4 प्रकार के नाइट्रोजनी क्षार उपस्थित होते है । अतः इनके शर्करा से संयोजन के फलस्वरूप चार प्रकार के न्यूक्लियोसाइड बनेंगे ।
(i) डीऑक्सी राइबोज़ + एडिनीन = डीऑक्सी एडिनोसिन
(ii) डीऑक्सी राइबोज़ + ग्वानिन = डीऑक्सी ग्वानोसिन
(iii) डीऑक्सी राइबोज़ + थायमीन = डीऑक्सी थाइमिडीन
(iv) डीऑक्सी राइबोज़ + साइटोसिन = डीऑक्सी साइटिडीन
न्यूक्लियोटाइड :- प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में एक अणु डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा, एक अणु फॉस्फोरिक अम्ल एवं चार नाइट्रोजनी क्षार में से एक क्षार अणु होता है ।
अथवा
(i) फॉस्फोरिक अम्ल + डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा + एडिनीन = डीऑक्सी एडिनोसिन मोनो फॉस्फेट
(ii) फॉस्फोरिक अम्ल + डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा + ग्वानिन = डीऑक्सी ग्वानोसिन मोनो फॉस्फेट
(iii) फॉस्फोरिक अम्ल + डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा + थायमीन = डीऑक्सी थाइमिडीन मोनो फॉस्फेट
(iv) फॉस्फोरिक अम्ल + डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा + साइटोसिन = डीऑक्सी साइटिडीन मोनो फॉस्फेट
 पॉलीन्यूक्लियोटाइड :- जब फॉस्फेट समूह फॉस्फोएस्टर बंध द्वारा न्यूक्लियोसाइड के 5' हाइड्रोक्सिल समूह से जुड़ जाता है, तब सम्बंधित न्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । दो न्यूक्लियोटाइड 5'-3' फॉस्फोडाईएस्टर बंध द्वारा डाईन्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । इस तरह से कई न्यूक्लियोटाइड जुड़कर एक
पॉलीन्यूक्लियोटाइड :- जब फॉस्फेट समूह फॉस्फोएस्टर बंध द्वारा न्यूक्लियोसाइड के 5' हाइड्रोक्सिल समूह से जुड़ जाता है, तब सम्बंधित न्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । दो न्यूक्लियोटाइड 5'-3' फॉस्फोडाईएस्टर बंध द्वारा डाईन्यूक्लियोटाइड का निर्माण होता है । इस तरह से कई न्यूक्लियोटाइड जुड़कर एक पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखला का निर्माण करते है ।
इस प्रकार निर्मित बहुलक के डीऑक्सी राइबोज़ शर्करा के 5' किनारे पर स्वतंत्र फॉस्फेट समूह मिलता है जिसे पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखला का 5' किनारा कहते है । ठीक इसी तरह से बहुलक के दूसरे सिरे पर डीऑक्सी राइबोज़ युक्त 3' हाइड्रॉक्सिल समूह से जुड़ा होता है ।जिसे पॉलीन्यूक्लियोटाइड का 3' किनारा कहते है ।
पॉली न्यूक्लियोटाइड के आधार (रज्जुक) का निर्माण शर्करा एवं फॉस्फेट से होता है । नाइट्रोजनी क्षार DNA के रज्जुकों के भीतर स्थित (प्रक्षेपी) होते हैं ।
द्विकुंडलित DNA की संरचना :-
मौरिस विल्किन्सन एवं रोज़लिन फ्रेंकलीन द्वारा दिए गए एक्सरे विवर्तन आँकड़ो के आधार पर सन् 1953 में जेम्स वॉटसन एवँ H.F.C. क्रिक ने DNA की आण्विक संरचना का सर्वमान्य द्विकुण्डलित प्रतिरूप दिया था ।
द्विकुंडलित DNA मॉडल की विशेषताएँ :-
वाटसन एवं क्रिक ने के अनुसार-
- प्रत्येक डीएनए अणु दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रंखलाओं की बनी एक दूसरे के प्रतिसमांतर रज्जुक होती है जिसमें डीएनए अपने अक्षसे कुछ दाईं ओर घुमा हुआ होता है ।
- श्रृंखला के दोनों रज्जुक शर्करा व फॉस्फेट से बने होते हैं एवं भीतर की ओर नाइट्रोजन क्षार स्थित होते हैं ।
- दोनों श्रृंखलाएं प्रतिसमांतर ध्रुवणता रखती है अर्थात् एक श्रृंखला की ध्रुवणता 5'-3' की ओर जबकि दूसरी श्रृंखला की ध्रुवणता 3'-5' की ओर होती है ।
- दोनों रज्जुकों के क्षार आपस में दुर्बल हाइड्रोजन बंध के द्वारा जुड़कर क्षारयुग्म बनाते हैं । इसमें एडनिन के साथ थायमिन दो हाइड्रोजन बंध के द्वारा एवं ग्वानीन, साइटोसीन के साथ तीन हाइड्रोजन बंध के द्वारा जुड़े हुए होते है जिसके फलस्वरूप कुंडलन के दोनों रज्जुकों बीच लगभग समान दूरी बनी रहती है । दोनों श्रृंखलाएं दक्षिणावर्ती कुंडलीत होती है ।
- DNA की दोनों श्रृंखलाओं के मध्य की दूरी 20 Å होती है । प्रत्येक कुंडलन का एक घुमाव 34 Å पर होता है ।
- प्रत्येक दो न्यूक्लियोटाइड के मध्य 3.4 Å की दूरी होती है अर्थात् डीएनए में एक कुण्डलन 10 क्षार युग्मों पर होता है ।
- द्विकुंडलीत संरचना में एक क्षार युग्म की सतह के ऊपर दूसरे स्थित होते हैं एवं हाइड्रोजन बंध कुंडलनी संरचना को स्थायित्व प्रदान करता है ।
 
 चारगॉफ का तुल्यता का नियम :-
रसायनविज्ञ इरविन चारगॉफ एवं उसके सहयोगियों ने डीएनए का रासायनिक विश्लेषण कर निम्न निष्कर्ष निकाले-
(i) DNA के अणुओं का जल अपघटन करने पर पाया कि  एडिनिन की कुल मात्रा सदैव थायमिन की कुल मात्रा के बराबर होती है (A=T)
(ii) इसी प्रकार साइटोसीन अणुओ की मात्रा ग्वानिन के बराबर होती है (C=G)
(iii) चारगॉफ के तुल्यता के अनुसार प्राकृतिक डीएनए में A/T क्षारों का अनुपात लगभग 1 होता है इसी प्रकार G/C का अनुपात भी लगभग 1 होता है।
इस नियम से यह पता चलता है कि DNA की द्विकुण्डलित संरचना में दो श्रृंखलाएँ होती है यदि एक श्रृंखला में एडिनीन (A) है तो दूसरी श्रृंखला में इसके सामने थायमिन (T) होगा । इसी कारणवश एडीनीन व थायमिन एवं सायटोसिन व गवानीन की मात्रा एक-दूसरे के बराबर होती है और DNA में क्षार दो जोड़ियों के रूप में होते हैं - (i) A & T (ii) G & C इन दोनों जोड़ियों को पूरक क्षार जोड़ियाँ कहा जाता है ।
इस नियम से यह पता चलता है कि DNA की द्विकुण्डलित संरचना में दो श्रृंखलाएँ होती है यदि एक श्रृंखला में एडिनीन (A) है तो दूसरी श्रृंखला में इसके सामने थायमिन (T) होगा । इसी कारणवश एडीनीन व थायमिन एवं सायटोसिन व गवानीन की मात्रा एक-दूसरे के बराबर होती है और DNA में क्षार दो जोड़ियों के रूप में होते हैं - (i) A & T (ii) G & C इन दोनों जोड़ियों को पूरक क्षार जोड़ियाँ कहा जाता है ।
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नाइट्रोजनी क्षारक में पिरिमिडीन तीन प्रकार के होते है
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2थायमीन (thymine) - T
3 युरासिल (urasil)-U