DNA की द्विकुण्डलित रचना के प्रतिपादन के साथ ही वाटसन एवँ क्रिक ने DNA की प्रतिकृति प्रस्तुत की ।
DNA की प्रतिकृति के दौरान दोनों रज्जुक अलग होकर टेम्पलेट के रूप में
कार्य करते है और नये पूरक रज्जुकों का निर्माण करते है ।
प्रतिकृति के पूर्ण होने के बाद जो DNA अणु बनता है, उसमें एक पैतृक एवँ एक नई निर्मित रज्जुक
होती है ।
DNA प्रतिकृति की यह प्रक्रिया अर्द्धसंरक्षी प्रतिकृति कहलाती है ।
DNA की अर्द्धसंरक्षी प्रतिकृति का
प्रायोगिक प्रमाण :-
DNA की अर्द्धसंरक्षी
प्रतिकृति के बारे में सर्वप्रथम " इस्चेरिचिया कोलाई (E.coli) नामक जीवाणु पर मैथ्यू
मेसल्सन एवँ फ्रेंकलिन स्टॉल ने 1958
में
प्रयोग किया ।
इस प्रयोग में E.coli को 15NH4Cl ( कई पीढ़ियों तक केवल
नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में कार्य करता है ) नाइट्रोजन युक्त माध्यम में
संवर्धित किया जिसके परिणामस्वरूप नव-निर्मित DNA एवँ दूसरे नाइट्रोजन युक्त यौगिकों में भारी नाइट्रोजन या 15N व्यवस्थित हो जाता है ।
इसके बाद E.coli का संवर्द्धन सामान्य नाइट्रोजन वाले (14N) माध्यम में किया गया ।
इसके पश्चात निश्चित समय अंतराल पर गुणित
कोशिकाओं के नमूनों को लेने पर एवँ इससे DNA निष्कर्षण करने पर पाया कि DNA हमेशा द्विरज्जुक कुण्डलियों के रूप में मिलता है ।
भारी DNA अणु को सामान्य DNA
से NH4Cl के घनत्व प्रवणता में अभिकेंद्रीकरण करने से अलग
किया जा सकता है ।
DNA के घनत्वों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए CsCl की प्रवणता पर अलग किया
गया ।
इस प्रकार पहली पीढ़ी में बनने वाले दो
संतति DNA में से प्रत्येक
में एक रज्जुक 15N युक्त जनकीय एवँ दूसरी
रज्जुक सामान्य 14N युक्त तथा इससे DNA निष्कर्षित करने पर पाया गया कि इसका
घनत्व संकरित या मध्यवर्ती था ।
40 मिनट बाद DNA की पीढ़ी के
संवर्धन से निष्कर्षित किया गया कि समान मात्रा में संकरित DNA हल्के DNA से मिलकर बना होता है ।
इसके बाद पुनः स्वप्रतिकृतिकरण होने के
कारण ही चार DNA बने इनमें से दो
DNA अणुओं में एक-एक रज्जुक 15N व 14N की होती है तथा शेष दो
डीएनए अणु में दोनों रज्जुक केवल 14N के बने होते हैं ।
टेलर का प्रयोग :-
टेलर एवँ सहयोगियों ने सन् 1958 में विसिया फाबा पर
नव-निर्मित डीएनए का गुणसूत्र में वितरण का पता लगाने के लिए विकिरण सक्रिय
थायमीडिन का प्रयोग किया ।
इस प्रयोग से यह सिद्ध हुआ कि गुणसूत्र
में DNA अर्द्धसंरक्षीय
प्रतिकृति करता है ।
DNA प्रतिकृति की कार्यप्रणाली एवँ एंजाइम :-
E.coli जीवाणु में प्रतिकृति हेतु उत्प्रेरक को समूह की आवश्यकता
होती है ।
मुख्य एंजाइम जो DNA पर निर्भर होता है उसे DNA-पोलीमेरेज कहते हैं । यह एंजाइम DNA टेम्पलेट का उपयोग कर डीऑक्सि
न्यूक्लियोटाइड के बहुलकन को उत्प्रेरित करता है ।
यह एंजाइम बहुत ही कम समय में अधिक संख्या
में न्यूक्लियोटाइड से पॉलीन्यूक्लियोटाइड बनने को उत्प्रेरित करता है ।
Eg. :- E.coli जीवाणु में4.6×106 क्षार युग्म मिलते है जिनमे प्रतिकृति प्रक्रिया पूर्ण होने
में 18 मिनट लगते है । अर्थात्
बहुलिकरण की औसत दर लगभग 2000 क्षार युग्म
प्रति सेकण्ड है ।
यह अत्यधिक शीघ्रता से प्रतिकृति ही नहीं
करते बल्कि अधिक शुद्धता के साथ अभिक्रिया को उत्प्रेरित करते है ।
डीएनए पॉलीमेरेज के साथ अन्य एन्ज़ाइम
मिलकर प्रतिकृति क्रिया को पूर्ण करने का कार्य करते है ।
Eg. हेलिकेज एंजाइम - प्रतिकृति प्रारम्भ हेतु ।
लंबे DNA अणु के दोनों रज्जुक एक साथ पृथक नहीं होते है क्योंकि इसके लिए अधिक
ऊर्जा की आवश्यकता होती है ।
प्रतिकृति के दौरान DNA कुण्डलनी छोटे-छोटे भाग में 'Y' के आकार की शाखा में खुलते है जिसे
प्रतिकृति द्विशाखा या रेप्लिकेशन फॉर्क कहते है ।

DNA प्रतिकृतिकरण अर्द्धअसतत् एवँ द्विदिशीय होता है । अर्द्धअसतत् इसलिए कि
बनने वाले दो पूरक रज्जुकों में से एक पूर्ण तथा दूसरा टुकडों में बनता है ।
(3'--->5') ध्रुवता वाली टेम्पलेट की रज्जुक पर प्रतिकृति
सतत् होती है जबकि दूसरे पूरक रज्जुक में 5'--->3' ध्रुवता वाले टेम्पलेट रज्जुक पर असतत् होती है
इसे पश्चगामी रज्जुक कहते है । इसके पश्चात असतत् रूप से संश्लेषित खण्ड लाइगेज
एन्ज़ाइम के द्वारा जोड़ दिए जाते है ।
DNA पॉलीमेरेज स्वयं प्रतिकृति की शुरुआत नहीं कर सकते है ।
DNA की प्रतिकृति का आरम्भ डीएनए अणु के किसी भी एक स्थान से ( जीवाणु या
विषाणु) अथवा अनेक स्थानों से (यूकेरियोट) होता है ।
E.coli के डीएनए में कुछ निश्चित स्थल होते हैं जहाँ से प्रतिकृति की
शुरुआत होती है इन स्थलों को प्रतिकृति स्थल कहते है ।
यूकेरियोट जीवों में DNA की प्रतिकृति कोशिकाचक्र की S-Phase (संश्लेषण अवस्था) में
होती है ।
DNA की प्रतिकृति होने के बाद कोशिकाविभाजन न होने के कारण बहुगुणिता की
स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
Central Dogma Theory :-
प्रतिपादक - क्रिक
DNA की द्विकुंडली संरचना के
सिद्धांत का विचार आनुवंशिक सूचनाओं का संचलन DNA से RNA एवं RNA से प्रोटीन को ओर होता
रहता है |
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