जीन अभिव्यक्ति का नियमन :-
आण्विक जीव विज्ञान
सम्बंधित आधुनिक अध्ययन करने के अंतर्गत जीन को प्रेरित या दमित करके एंजाइम की
उत्पत्ति को संचालित किया जाता है | इसके साथ ही जीन को निष्क्रिय या अवरुद्ध करके
प्रोटीन संश्लेषण में अनुलेखन व अनुवादन जैसी प्रक्रियाओं को भी निष्क्रिय किया जा
सकता है | इस प्रकार जीनों द्वारा किसी उपापचयी परिपथ की अभिक्रियाओं के नियन्त्रण
को जीन अभिव्यक्ति कहते है |
जीन की अभिवयक्ति का यह
नियमन प्रोकैरियोट एवं यूकैरियोट सजीवों में अलग-अलग प्रक्रियों द्वारा संचालित
होता है जो निम्न प्रकार है -
(i) यूकैरियोट में जीन
नियमन :-
यूकैरियोट में जीन नियमन
निम्न स्तर पर हो सकता है -
(a) अनुलेखन स्तर
(प्रारंभिक अनुलेखन का निर्माण)
(b) संसाधन स्तर (सम्बन्धन
का नियमन)
(c) m-RNA का केन्द्रक से
कोशिकाद्रव्य में अभिगमन
(d) स्थानान्तरण स्तर
जीन कोशिका में अभिव्यक्त
होकर एक विशेष कार्य को सम्पादित करते है |
(ii) प्रोकैरियोट में जीन
नियमन :-
प्रोकैरियोट में जीन नियमन
निम्न स्तर पर हो सकता है -
E.coli में स्थित
एंजाइम बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज, डाई
सैकेराइड लैक्टोज का जल अपघटन कर गैलेक्टोज व ग्लूकोस का निर्माण करते है | जिसे
जीवाणु उर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करते है |
डाई सैकेराइड लैक्टोज बीटा
(β)-गैलेक्टोसाइडेज गैलेक्टोज
+ ग्लूकोस
लैक्टोज जो जीवाणु के ऊर्जा
का स्रोत है कि अनुपस्थिति में बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम का संश्लेषण नहीं होता है | अतः यह
एक उपापचयी शरीर क्रियात्मक स्थिति है जो जीन की अभिव्यक्ति को नियमित करती है |
एक भ्रूण का व्यस्क जीव में
विकास एवं विभेदन जीन के विभिन्न समूह की अभिव्यक्ति नियमन का परिणाम है |
प्रोकैरियोट सजीवों में
उपस्थित नियमनकारी जीन निम्न दो प्रक्रियाओं द्वारा जीनों की क्रियाशीलता का नियमन
करते है |
(i) प्रेरण (ii) दमन
प्रोकैरियोटिक में जीन
अभिव्यक्ति के नियमन के लिए कुछ प्रभावी स्थल होते है जो अनुलेखन प्रारंभन दर को
नियमित करते है |
अनुलेखन इकाई में एक
निश्चित उन्नायक के साथ RNA पोलीमेरेज की क्रियाशीलता अतिरिक्त प्रोटीन की
पारस्परिक क्रिया द्वारा नियमित होती है जो प्रारम्भक स्थल को पहचानने में सहायता
देती है | ये नियामक प्रोटीन प्रेरण एवं दमनकारी दोनों रूप में कार्य कर सकती है |
प्रोकैरियोट DNA में
प्रोमोटर स्थल या उन्नायक स्थल की उपलब्धता प्रोटीन की विशेष अनुकार्मों से
अन्योन्य क्रिया द्वारा निर्मित होती है जिसे ऑपरेटर या प्रचालक कहते है |
अधिकतर ऑपेरोन (प्रचालेक)
में ऑपरेटर (प्रचालक) स्थल प्रोमोटर भाग के पास स्थित होते है | ऐसी स्थिति में
ऑपरेटर के अनुक्रम (नाइट्रोजनी क्षार) दमनकारी प्रोटीन से बंध जाते है | प्रत्येक
ऑपेरोन का अपना एक विशिष्ट ऑपरेटर एवं दमनकारी प्रोटीन होता है |
eg. लैक ऑपेरोन लैक ऑपरेटर
से मिलता है | यह विशेष रूप से लैक दमनकारी से अन्योन्य क्रिया करता है |
लैक ऑपेरोन मॉडल (The Lac Operon Model) :-
सर्वप्रथम आनुवंशिकविज्ञ
फ्रेक्वस जैकब एवं जैव रसायनविज्ञ जैकब मोनाड ने E.coli जीवाणु का अध्ययन करने पर
प्रोकैरियोट के जीन नियमन को समझाने के लिए ऑपेरोन मॉडल प्रस्तुत किया | उन्होंने
E.coli में बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम के संश्लेषण से सम्बंधित प्रेरण
तंत्र का अध्ययन करते हुए जीन नियमन की प्रेरण एवं दमन अवधारणा विकसित की |
E.coli का लैक ऑपेरोन मॉडल
मुख्यतः एंजाइम बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज के संश्लेषण कार्य पर आधारित है | यह
एंजाइम लैक्टोज शर्करा का विघटन ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज में करता है | इसलिए इसे
लैक ऑपेरोन मॉडल कहते है |
लैक ऑपेरोन में एक
वर्तुलाकार DNA होता है जिसमे जीवाणु का आनुवंशिक पदार्थ स्थित होता है | इस
ऑपेरोन में चार मुख्य घटक पाए जाते है जो समन्वित रूप से कार्य करते है, ये घटक
निम्न है -
(i) संरचनात्मक जीन
(Structural gene)
(ii) नियामक जीन (Regulator
gene)
(iii) प्रचालक जीन
(Operator gene)
(iv) उन्नायक जीन (Promotor
gene)
(i) नियामक जीन (Regulator
gene) :-
यह ऑपेरोन मॉडल में पाए
जाने वाली विशेष प्रकार की जीन है जो प्रोमोटर जीन के पहले स्थित होती है | इनका
विशेष कार्य संरचनात्मक जीन को नियंत्रित करना है | ये आवश्यकता अनुसार दमनकारी
पदार्थ उत्पन्न करती है | इस प्रोटीनीय पदार्थ को 'i' (inhibitor gene) कहते है |
इस प्रकार यह जीन एंजाइमी प्रोटीनों की संरचना का निर्धारण न करके अन्य जीनों जैसे
संरचनात्मक जीन एवं प्रोमोटर जीन की अभिव्यक्ति का नियमन करते है |
(ii) संरचनात्मक जीन
(Structural gene) :-
यह ऑपेरोन का प्रमुख
कार्यकारी घटक है जो प्रोटीन के लिए कोड
निर्धारित करती है | E.coli के लैक ऑपेरोन में तीन प्रकार की संरचनात्मक जीन
क्रमशः z, y एवं a पाई जाती है | ये जीन पोली सिस्ट्रोनिक m-RNA अणु का अनुलेखन
करते है |
z जीन बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम को
कोडित करता है जो डाइसैकेराइड लैक्टोज के जल अपघटन से ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज का
निर्माण करता है |
y जीन परमिएज का कूटलेखन
करता है जो लैक्टोज के कोशिका में प्रवेश को आसान बनाता है |
a जीन के द्वारा ट्रान्स
एसीटायलेज का कूट लेखन किया जाता है जो लैक्टोज प्रेरण के समय बहुत थोड़ी मात्रा
में उपलब्ध रहता है |
इस प्रकार से लैक ऑपेरोन के
तीनों जीन के उत्पाद लैक्टोज उपापचयी के लिए आवश्यक है |
(iii) प्रचालक जीन
(Operator gene) :-
यह प्रथम संरचनात्मक जीन के
पास स्थित होती है | मॉडल में कार्य विभाजन के अनुसार प्रचालक (operator) जीन अनुलेखन क्रिया का दमन करता है एवं
संरचनात्मक जीन पर ऋणात्मक नियन्त्रण करता है |
(iv) उन्नायक जीन (Promotor
gene) :-
यह ऑपरेटर जीन के आगे पाए
जाने वाला ऑपेरोन का विशिष्ट भाग है क्योंकि एंजाइम RNA पोलीमेरेज इससे सम्बद्ध
रहता है | इसका कार्य प्रोटीन निर्माण नहीं होता है अपितु पोलीमेरेज की उपस्थिति
के कारण प्रोमोटर जीन, संरचनात्मक जीन के अनुलेखन का प्रारंभन करता है |
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