Tuesday, 24 October 2017

11. मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project)

मानव जीनोम परियोजना
संयुक्त राज्य अमेरिका के ऊर्जा विभाग एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था के सहयोग से 1 अक्टूबर 1920 को एक महत्वपूर्ण परियोजना का प्रारंभ हुआ जिसे मानव जीनोम परियोजना नाम दिया गया ।
  • मानव जीनोम परियोजना प्रारंभिक वर्षों में वेलकम न्यास ( यूनाइटेड किंगडम की एक संस्था) की मदद से इस परियोजना को विकसित किया गया था । लेकिन बाद में जापान, फ्रांस, जर्मनी, चीन एवं अन्य देशों के द्वारा सहयोग प्रदान किया गया । यह योजना 2008 में पूर्ण हो गई थी ।
  • इस परियोजना के द्वारा विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाले डीएनए की विभिन्नताओं के आधार पर प्राप्त जानकारी से मानव में मिलने वाली हजारों अनियमितताओं के बारे में पहचानने, उपचार करने और उनको रोकने में सहायता मिलती है ।
  • इस योजना को प्रारंभ में 13 वर्ष के लिए बनाया गया था लेकिन तकनीकी आधुनिकीकरण के कारण इस योजना पर तेजी से कार्य करना संभव हो सका ।
  • परियोजना का मुख्य उद्देश्य सभी जीनों को पहचानना एवं लगभग 3.3×109 क्षार युग्मों के अनुक्रम का निर्धारण करना था ।
  • मानव जीनोम परियोजना के बारे में जानकारी जीव विज्ञान के इस नए क्षेत्र का तेजी से विस्तार संभव हो पाया जिसे जैव सूचना विज्ञान कहते हैं ।
  • मानव जीनोम परियोजना में लगभग 3.3×109 क्षार युग्म  मिलते हैं ; यदि अनुक्रम जानने के लिए प्रति क्षार 3 अमेरिकन डॉलर (US $ 3)  खर्च होते हैं तो पूरी योजना पर खर्च होने वाली लागत लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगी ।  प्राप्त अनुक्रमों को टंकणित रूप में किताब में संग्रहित किया जाए तो इसके प्रत्येक पृष्ठ में 1000 अक्षर हो तो इस प्रकार इस किताब में 1000 पृष्ठ होंगे । तब इस तरह से एक मानव कोशिका के DNA सूचनाओं को संकलित करने हेतु 3300 किताबों की आवश्यकता होगी । इस प्रकार बड़ी संख्या में आंकड़ों की प्राप्ति के लिए उच्च गतिकीय संगणक साधन की आवश्यकता होगी, जिससे आंकड़ों के संग्रह, विश्लेषण एवं पुनः उपयोग में सहायता मिलती है ।

मानव जीनोम परियोजना के लक्ष्य :-
(i) मानव के सभी जीनों (लगभग 20,000 - 25,000) की पहचान करना ।
(ii) मानव के जीनों (DNA)  को बनाने वाले 3.6×109 (3 बिलियन) क्षार युग्मों के अनुक्रमों का अध्ययन करना तथा प्राप्त सूचनाओं का आंकड़ों के रूप में संग्रह करना ।
(iii) आंकड़ों के विश्लेषण हेतु नई तकनीक विकसित करना ।
(iv) परियोजना द्वारा उत्पन्न होने वाले जातीय, नैतिक, कानूनी एवं सामाजिक मुद्दों (ELSI; Ethical, Legal and Social Issues) को समझाने एवं उनके बारे में विचार करने हेतु ।


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Saturday, 21 October 2017

10. जीन अभिव्यक्ति का नियमन (Regulation of Gene Exppression)

जीन अभिव्यक्ति का नियमन :-
आण्विक जीव विज्ञान सम्बंधित आधुनिक अध्ययन करने के अंतर्गत जीन को प्रेरित या दमित करके एंजाइम की उत्पत्ति को संचालित किया जाता है | इसके साथ ही जीन को निष्क्रिय या अवरुद्ध करके प्रोटीन संश्लेषण में अनुलेखन व अनुवादन जैसी प्रक्रियाओं को भी निष्क्रिय किया जा सकता है | इस प्रकार जीनों द्वारा किसी उपापचयी परिपथ की अभिक्रियाओं के नियन्त्रण को जीन अभिव्यक्ति कहते है |
जीन की अभिवयक्ति का यह नियमन प्रोकैरियोट एवं यूकैरियोट सजीवों में अलग-अलग प्रक्रियों द्वारा संचालित होता है जो निम्न प्रकार है -
(i) यूकैरियोट में जीन नियमन :-
यूकैरियोट में जीन नियमन निम्न स्तर पर हो सकता है -
(a) अनुलेखन स्तर (प्रारंभिक अनुलेखन का निर्माण)
(b) संसाधन स्तर (सम्बन्धन का नियमन)
(c) m-RNA का केन्द्रक से कोशिकाद्रव्य में अभिगमन
(d) स्थानान्तरण स्तर
जीन कोशिका में अभिव्यक्त होकर एक विशेष कार्य को सम्पादित करते है |
(ii) प्रोकैरियोट में जीन नियमन :-
प्रोकैरियोट में जीन नियमन निम्न स्तर पर हो सकता है -
E.coli में स्थित एंजाइम  बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज, डाई सैकेराइड लैक्टोज का जल अपघटन कर गैलेक्टोज व ग्लूकोस का निर्माण करते है | जिसे जीवाणु उर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करते है |
डाई सैकेराइड लैक्टोज बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज गैलेक्टोज + ग्लूकोस
लैक्टोज जो जीवाणु के ऊर्जा का स्रोत है कि अनुपस्थिति में बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम का संश्लेषण नहीं होता है | अतः यह एक उपापचयी शरीर क्रियात्मक स्थिति है जो जीन की अभिव्यक्ति को नियमित करती है |
एक भ्रूण का व्यस्क जीव में विकास एवं विभेदन जीन के विभिन्न समूह की अभिव्यक्ति नियमन का परिणाम है |
प्रोकैरियोट सजीवों में उपस्थित नियमनकारी जीन निम्न दो प्रक्रियाओं द्वारा जीनों की क्रियाशीलता का नियमन करते है |
(i) प्रेरण   (ii) दमन
प्रोकैरियोटिक में जीन अभिव्यक्ति के नियमन के लिए कुछ प्रभावी स्थल होते है जो अनुलेखन प्रारंभन दर को नियमित करते है |
अनुलेखन इकाई में एक निश्चित उन्नायक के साथ RNA पोलीमेरेज की क्रियाशीलता अतिरिक्त प्रोटीन की पारस्परिक क्रिया द्वारा नियमित होती है जो प्रारम्भक स्थल को पहचानने में सहायता देती है | ये नियामक प्रोटीन प्रेरण एवं दमनकारी दोनों रूप में कार्य कर सकती है |
प्रोकैरियोट DNA में प्रोमोटर स्थल या उन्नायक स्थल की उपलब्धता प्रोटीन की विशेष अनुकार्मों से अन्योन्य क्रिया द्वारा निर्मित होती है जिसे ऑपरेटर या प्रचालक कहते है |
अधिकतर ऑपेरोन (प्रचालेक) में ऑपरेटर (प्रचालक) स्थल प्रोमोटर भाग के पास स्थित होते है | ऐसी स्थिति में ऑपरेटर के अनुक्रम (नाइट्रोजनी क्षार) दमनकारी प्रोटीन से बंध जाते है | प्रत्येक ऑपेरोन का अपना एक विशिष्ट ऑपरेटर एवं दमनकारी प्रोटीन होता है |
eg. लैक ऑपेरोन लैक ऑपरेटर से मिलता है | यह विशेष रूप से लैक दमनकारी से अन्योन्य क्रिया करता है |

लैक ऑपेरोन मॉडल (The Lac Operon Model) :-

सर्वप्रथम आनुवंशिकविज्ञ फ्रेक्वस जैकब एवं जैव रसायनविज्ञ जैकब मोनाड ने E.coli जीवाणु का अध्ययन करने पर प्रोकैरियोट के जीन नियमन को समझाने के लिए ऑपेरोन मॉडल प्रस्तुत किया | उन्होंने E.coli में बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम के संश्लेषण से सम्बंधित प्रेरण तंत्र का अध्ययन करते हुए जीन नियमन की प्रेरण एवं दमन अवधारणा विकसित की |
E.coli का लैक ऑपेरोन मॉडल मुख्यतः एंजाइम बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज के संश्लेषण कार्य पर आधारित है | यह एंजाइम लैक्टोज शर्करा का विघटन ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज में करता है | इसलिए इसे लैक ऑपेरोन मॉडल कहते है |
लैक ऑपेरोन में एक वर्तुलाकार DNA होता है जिसमे जीवाणु का आनुवंशिक पदार्थ स्थित होता है | इस ऑपेरोन में चार मुख्य घटक पाए जाते है जो समन्वित रूप से कार्य करते है, ये घटक निम्न है -
(i) संरचनात्मक जीन (Structural gene)
(ii) नियामक जीन (Regulator gene)
(iii) प्रचालक जीन (Operator gene)
(iv) उन्नायक जीन (Promotor gene)
(i) नियामक जीन (Regulator gene) :-
यह ऑपेरोन मॉडल में पाए जाने वाली विशेष प्रकार की जीन है जो प्रोमोटर जीन के पहले स्थित होती है | इनका विशेष कार्य संरचनात्मक जीन को नियंत्रित करना है | ये आवश्यकता अनुसार दमनकारी पदार्थ उत्पन्न करती है | इस प्रोटीनीय पदार्थ को 'i' (inhibitor gene) कहते है | इस प्रकार यह जीन एंजाइमी प्रोटीनों की संरचना का निर्धारण न करके अन्य जीनों जैसे संरचनात्मक जीन एवं प्रोमोटर जीन की अभिव्यक्ति का नियमन करते है |
(ii) संरचनात्मक जीन (Structural gene) :-
यह ऑपेरोन का प्रमुख कार्यकारी घटक  है जो प्रोटीन के लिए कोड निर्धारित करती है | E.coli के लैक ऑपेरोन में तीन प्रकार की संरचनात्मक जीन क्रमशः z, y एवं a पाई जाती है | ये जीन पोली सिस्ट्रोनिक m-RNA अणु का अनुलेखन करते है |
z जीन बीटा (β)-गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम को कोडित करता है जो डाइसैकेराइड लैक्टोज के जल अपघटन से ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज का निर्माण करता है |
y जीन परमिएज का कूटलेखन करता है जो लैक्टोज के कोशिका में प्रवेश को आसान बनाता है |
a जीन के द्वारा ट्रान्स एसीटायलेज का कूट लेखन किया जाता है जो लैक्टोज प्रेरण के समय बहुत थोड़ी मात्रा में उपलब्ध रहता है |
इस प्रकार से लैक ऑपेरोन के तीनों जीन के उत्पाद लैक्टोज उपापचयी के लिए आवश्यक है |
(iii) प्रचालक जीन (Operator gene) :-
यह प्रथम संरचनात्मक जीन के पास स्थित होती है | मॉडल में कार्य विभाजन के अनुसार प्रचालक (operator) जीन अनुलेखन क्रिया का दमन करता है एवं संरचनात्मक जीन पर ऋणात्मक नियन्त्रण करता है |
(iv) उन्नायक जीन (Promotor gene) :-
यह ऑपरेटर जीन के आगे पाए जाने वाला ऑपेरोन का विशिष्ट भाग है क्योंकि एंजाइम RNA पोलीमेरेज इससे सम्बद्ध रहता है | इसका कार्य प्रोटीन निर्माण नहीं होता है अपितु पोलीमेरेज की उपस्थिति के कारण प्रोमोटर जीन, संरचनात्मक जीन के अनुलेखन का प्रारंभन करता है |

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Narration - Direct and Indirect

Direct को  Indirect (Reported speech) में बदलने के tenses से संबंधित नियम :-